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ग़ज़ल
कोई बतलाएगा 'आसिफ़' इस की है ता'बीर क्या
ख़्वाब में देखे हैं अक्सर इक परी और चंद फूल
यासिर रज़ा आसिफ़
शेर
शर्म कब तक ऐ परी ला हाथ कर इक़रार-ए-वस्ल
अपने दिल को सख़्त कर के रिश्ता-ए-इंकार तोड़
मुनीर शिकोहाबादी
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नज़्म
काले सफ़ेद परों वाला परिंदा और मेरी एक शाम
कोई फ़ल्सफ़ा कोई पाइंदा अक़दार नहीं, मेआर नहीं है
इस पर अहल-ए-दानिश विद्वान, फ़लसफ़ी
अख़्तरुल ईमान
ग़ज़ल
रंग हल्का सा गुलाबी है फिर उस पर ख़त-ए-सब्ज़
क़ाबिल-ए-दीद है 'अकबर' ये बहार-ए-आरिज़
शाह अकबर दानापुरी
ग़ज़ल
इक़बाल आज शहर-ए-निगाराँ में मेरा दिल
इस पर निसार है कभी उस पर निसार है